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"जर्जर होती कविता ये" जर्जर होती कविता ये क्या जर्ज़र ही रह जायेगी। या ऊबड़-खाबड़ रस्तों पे चल मंज़िल अपनी पाएगी।। तूफ़ानों में कश्ती माझी की क्या बीच भंवर फंस जाएगी। ...